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राहत(व्यंग कविता )

Arth
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निठल्लु छोकड़ो़ की झु़ंड ने,
प्लान बनाया,
सबने रात भर पीकड़,
यह कसम खाया,
किसी भी बहाने,
हमें जाम करना है,
हाथ में ले तख्थियॉं,नारे लगाते,
सुबह से शाम करना है ।

ढुढे भला क्या नहीं मिलता,
उन्हे भी मिल गया बहाना,
अगली ही रात लगने से करेंट,
मर गया समरू का नाना,

बस फिर क्या था ,
मिनटों में हो गयी तैयारी,
सड़क पर मचाने की हुर्दंग ,
उनकी आ गयी बारी |
निकल पड़े सब बन-ठन कर,
मांगने को राहत,
आ जायें हम भी टी.वी, अखबारों में ,
उनकी ये भी थी चाहत |
चल पड़े कूदते,
लगाते नारे “मांगे हो पूरी” ,
घर बैठे मन नहीं लगता ,
भैया अपनी भी समझो मज़बूरी,
बीच सड़क पर शव रख कर ,
कर दिया सड़क जाम,
“चाहिए राहत ” सुनो अधिकारीयों ,
तुम्हारी गलती से ये पहुंचे सुर धाम |
सुनते हो ,
या हम अपना रंग दिखाएं,
सड़क पर यहाँ-वहां ,
टायर जलाएं ?
आई पुलिस जब ,
वे सारे भागे उसी ओर,
दिखाते लिखी तख्तियां ,
नारे लगाते ताबरतोर |
पर आज इस दिन ,
कुछ और होना था,
इन निठल्लु के भाग्य में,
लिखा रोना था |
पहले की तरह आज ,
न सफल हुआ इनका फंडा,
पुलिस का इनके पिछुआरे,
परा खूब जम कर डंडा,
लौट ते निराश ,
उनमें से एक ने यह व्यक्तव्य साटा,
“मैंने कहा था ,अभी रुक जा ” ,
“बिल्ली ने रास्ता था काटा ” |

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